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1.मिल जाते हैं अक्सर | 

Mil Jaate Hain Aksar 




मिल जाते हैं अक्सर,

गली, सड़क, मोड़ किनारे,

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे,

नहीं मिलता तो,

एक प्यार से भरा दिल,

हो जिसका  सिद्धांत,

मानवता की पूजा,

जिसने पहना हो,

आभूषण नम्रता का,

जो हो प्यार से भरपूर,

जो हो एक के साथ इकमिक,

बोले बोल शहद से मीठे,

जो खाये हक़ हलाल की कमाई,

शांति का हो जो पुंज,

जिसके सीने से फूटें दरिया,

महानता के,

समदृष्टि के,

अपनेपन  के।




2. जो 'सत्य' का धारक | 

Jo Satya Ka Dharak



जो 'सत्य' का धारक,

वो स्वच्छता  का भी धारक,

उच्च - स्वच्छ,

मिथ्यात्व से परे,

बनावट के बिना,

एक अनोखा जीव,

लगे न जैसे पृथ्वी का,

आसमान से ऊँचा ,

समुद्र से गहरा,

न किसी के तुल्य,

सभी में रहता है,

सभी के विपरीत,

अल्बेला - अजीब,

लेकिन 'सत्य' का धारक,

स्वच्छता  का धारक,





3.  मुक्त हूँ | 

Mukt Hoon 


मुक्त हूँ, मैं मुक्त हूँ।  

न बंधनों से संयुक्त हूँ।  

हैं, कुछ जिम्मेदारियां,

उनसे तो मैं युक्त हूँ। 

पर मैं विमुक्त हूँ।  


मुक्त हूँ, मैं मुक्त हूँ।  



4.  Tu Hubhu  Hai |

      तूँ हूबहू है


तस्वीर में सूरत तेरी, कि तस्वीर भी तू है।

मैं जिधर देखता हूँ, बस तूँ ही हूबहू है।

कोई आस नहीं बाकी, न कोई है तमन्ना।

दीदार की तलब है, तेरे साथ की जुस्तजू है।

ढूंढता था कभी मैं, तुझको यहाँ - वहां,

नावाकिफ़ था दीवाना, कि  तू रूबरू है।

ज़िन्दगी का फ़साना, ज़िन्दगी की कहानी।

कि तू मेरी ज़िन्दगी, तू मेरे लू - लू है।

जरा दूर बैठ यार, थोड़ा सा खिसक ले।

मैं नहा कर हूँ आया, तेरे आस्तीन में बू है।



5 . Chaar Inton  Ka Ghar |
चार ईंटों का घर। 

हो चार ईंटों का बना घर,
याँ हो तिनकों की झोंपड़ी, 
अगर बसता हो वहां सन्मान, 
प्यार व् सत्कार, 
तो स्वर्ग का नक्शा है, 
ईश्वर का निवास है वहाँ,
और शायद वो जो हैं बड़े- बड़े बंगले, 
जो अंदर बहार से चमकते हैं,  
जो खड़े हैं अपनी प्रतिष्ठा व् मान- सन्मान के साथ, 
तरसते होंगे, 
इन चार ईंटों से बने घर की दहलीज को, 
चाहते होंगे इसके आँगन की मिटटी को,
प्रणाम करना,
और देवते,
जिनकी इंसान करता है पूजा, 
दो घड़ी करने को सुख का अहसास, 
आते होंगे इस घर की चौगाठ  पे, 
करते होंगे प्रवेश,
इन चार ईंटों से बने घर में,
और होते होंगे नतमस्तक,
घर अंदर बसते ईश्वर को,
जो है प्रेम स्वरुप,
आनंद स्वरुप।  




6.  Jab Bharega Paap Ka Ghada
जब भरेगा पाप का घड़ा

जब भरेगा पाप का घड़ा,
जब होगी धरम की हानि,
तेरा वादा है,
कि तूं आयेगा।

जब बनेगा मानव दानव,
जब पसरेगी अमानवीयता,
तूने कहा था,
कि अंतिम दिन नज़दीक होगा।   

जब होगा सत्य अलोप,
और झूठ का होगा तांडव,
तो तूने कहा था,
मरी पड़ेगी।

जब होंगे सब स्वार्थी,
और लालच के कुत्ते भौंकेंगे,
तो समझ लेना,
मेरे वचन सत्य होने वाले हैं। 

जो होगा तेरा सेवक,
ओर चलेगा तेरे वचन पे,
तेरा वचन है,
कि होगा उसका,
बाल भी बांका नहीं। 


जब होगा ये सब,
जब होंगे ऐसे हालात,
तो करना पशचाताप,
और आ जाना सच्चे मन से,
मेरी शरण में,
और करना अपने पापों से तौबा,
तेरा निर्देश है। 

मत भूल,
कि वो पिता है,
हैं सब उसके लिए एक जैसे,
जब उसने दिया है सब - कुछ,
तो उसे हक़ है,
लगाने का एक चपत,
कि आ जाएँ उसके बच्चे,

सही राह पर। 


7.  Tham Si Gai Hai 
      थम सी गई है


चलती का नाम ज़िंदगी है,
आज थम सी गई है।
मदहोशी थी आँख में पहले,
आज नम सी गई है।
हैवानियत का जो आलम था,
नब्ज वो जम सी गई है।
हो रही है पृथ्वी हलकी,
भावना ये रम सी गई है।
सपनो की वो दुनिया हमारी,
कहाँ छम सी गई है।



8.  Mulyavaan
     मूल्यवान


कुछ जोड़ा है,
कुछ तोड़ा है,
कुछ है हमने संभाला,
कुछ है जो छोड़ा है,
हम सब ने ये किया है,
ज़हर सब ने पिया है,
वक्त का कांटा है जो,
वो सब ने जिया है,
ये क्या किया है,
ये क्या किया है,
पर आओ,
अब संभल जाएँ,
अंतर मन में डुबकी लगाएं, 
जो किया है,
जो जिया है,
उसपे एक निगाह फेरें,
जोड़े हुए को देखें, 
तोड़े हुए पर नज़र दौड़ाएं,
लगाएं हिसाब - किताब, 
जोड़ें और घटाएं,
उँगलियों पर गिनते जाएँ, 
और अंत में जो पाएं
जो बच  जाए,
जो शेष आये,
उसे देखें, टटोलें, 
करें एक अन्वीक्षण,
कि जो अतिरिक्त आया है,
जो हमने पाया है,
क्या वो सही है,
क्या वो मूल्यवान है।




9 .  Ye Kya Ho Raha Hai 
     ये क्या हो रहा है। 


ये क्या हो रहा है,
ये क्या हो रहा है,
खेल रही है कुदरत,
इंसान रो रहा है।

एक बंदा ही है,
जो बंदा नहीं बनता,
बिन सोचे समझे,
जो चाहे बो रहा है।


आज आँखें नम हैं,
सीने में गम है,
कोई बंद है पिंजरे में,
और आराम से सो रहा है।


बर्बरता थी पसरी पहले,
अराजकता थी चहुँ और,
आज इन्सनियत की तरफ,
कदम हो रहा है।





10.  Hari Naam Ati Pyara Hai 

       हरी नाम अति प्यारा है 

हरी नाम अति प्यारा है।
हरी से जग उजिआरा है।

जो डूबा हरी नाम रस में,
अंतर में फूटी अमृतधारा है।

जग की रचना झूठ है बन्दे,
धूप, छाँव, अँधिआरा है।

सो जीवे जो हरी को सुमिरे,
बिन सुमिरन गया मारा है।

कण कण में हरी बसे  हैं,
यां कण कण हरी सारा है।

झूठे स्वाद हैं जगत के,
साधू के लिए जग खारा  है।


11.  Pal Ki Khabar Nahin        

       पल की खबर नहीं 

पल की ख़बर नहीं,
सपने हज़ारों सजा लिए।

घर मातम है पड़ोसी के,
और तूने झंडे गढ़ा लिए।

आहिस्ता - आहिस्ता ऐ बन्दे,
मनसूबे कितने बढ़ा लिए।

खुद जिम्मेदार है तूं ,
हालात अपने कैसे करा लिए।


12.  Pyaar        

       प्यार 

घटित हो रहा है कुछ,
कुछ हो रहा है निर्मित,
तेरे मेरे बीच में,
मन के भीतर,
आत्मा के पास,
बिन सुने,
बिन कुछ कहे,
चुपके - चुपके,
जो है,
अदृश्य,
अनिवार्य,
आत्मीय,
और अलौकिक,
कुछ बहुत खास,
बहुत मीठा,
वहीं मन के भीतर,
आत्मा के पास,
शायद ये प्यार है,
प्यार जो ईशवर है ।


13 .  Sudhar Jaate Hain         


       सुधर जाते हैं। 

आओ अब सुधर जाते हैं।
प्यार के  लिए बनी थी धरती,
इसमें फूल खिलाते हैं। 

दूर तक दौड़े तुम, 
भागे दिन और रात भर,
आओ अब घर लौट जाते हैं।  

दुश्मनी, अहंकार, लालच,
ये तेरे खिलोने रहे,
चलो इनको जला कर आते हैं।  

अपना घर भरने की,
तेरी आदत रही सदा, 
थोड़े में बाँट आज खाते हैं।  

करें एक प्रण हम, 
हाथ से हाथ मिलाने का,
और ता- उम्र  इसे निभाते हैं।  

प्यार, सबर, दया,
ये नहीं हैं शब्द मात्र, भाव हैं,
जो उसको सदा भाते हैं।  


14  .  chooya Hai तुमने          

         छूया है तुमने 


छूया है तुमने मुझे,
आज फिर,
आज फिर दी है आवाज़,
मेरी अंतर -आत्मा से,
दे कर एक दस्तक,
बताया है कि मेरे साथ हो,
अंग-संग बसने वाले,
मालिक हो मेरे तुम,
तुम,
नहीं कोई अलग हस्ती,
नहीं कोई अलग वस्तु, 
और मैं,
एक मोती की तरह, 
जो बिछड़ा तेरी गोद से, 
यां हूँ  धूल का एक कण मात्र, 
एक लहर हूँ, 
जो सागर से जन्मी,
सागर पे पली,
और आखिर,
होगी वलीन सागर में ही,
खोज -खोज कर पाया, 
कि मैं तो आखिर तुम ही, 
तेरा ही प्रतिबिम्ब,
बस फर्क इतना, 
कि तुम जानते हो, 
तुम्हे सब पता है,
और मैं अनजान,
अपने ही घर से,
पर कराया है आज याद,
पता दिया है मेरे ही घर का,
जब किया है स्पर्श तुमने,
दे कर आवाज़,
मेरी अंतर आत्मा से,
और बताया है की तूं मेरे साथ है, हे अंग - संग में समाहित,
समाया है मेरे अंदर-बाहर,
एक सार लगातार।

15. Fir Vahi Din HOnge

फिर वही दिन होंगे 


फिर वही दिन होंगे,
फिर वही रातें  होंगी। 
फिर महकेगी दोस्ती,
फिर प्यार की बातें होंगी । 

संजो ले कुछ ऐ मेरे यार,
जो मिले है फुर्सत के पल।
तेरे मिलने का इन्तज़ार  है,
कि क्या तेरी सौगातें होंगी । 


जो न समझे दिल की,
वो दिल भी क्या दिल है,
कैसी ज़िन्दगी होगी वो,
क्या उनकी औक़ातें होंगी। 


कोई रिश्ता न बन पाया,
चाहे मिले हज़ारों बार। 
अब और कितनी ऐ दोस्त,
ये खाली सी मुलाकातें होंगी।

16 . AAkhir VAhin Jaoonga 

       आख़िर वहीं जाऊँगा 


मैं जल हूँ, 
पर एक बूँद मात्र,
अथाह में मिल जाऊँगा।  


मैं अग्नि हूँ, 
पर एक चिनगी मात्र,
क्या कुछ कर पाऊंगा।  


मैं हवा हूँ, 
पर के झोंका मात्र,
जाने किधर जाऊँगा।  

मैं धरती हूँ, 
पर एक कण मात्र,
यहीं कहीं मिल जाऊँगा।   


मैं आकाश हूँ,
पर के मुट्ठी मात्र,
खुलेगी, समा जाऊँगा।   

मैं अनंत हूँ, 
पर अभी कैद में, 
आखिर वहीँ जाऊँगा।  

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